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भारत में बेटी का जन्म अपराध घोषित होना चाहिए


"भैया! भैया, प्लीज़! प्लीज़ छोड़ दो भैया! मेहरबानी कर दो।"

ये आवाज़ कानों में गूंज रही है; लगता है गले में कुछ अटक-सा गया है। गला रूध गया है। शायद कलेजे में भी ख़ून का थक्का जम गया हो, एक अजीब चुभन हो रही है। कितना बुरा है असहाय होना, कितना भयानक है कमज़ोर होना।
जहानाबाद की उस बच्ची की चीख - भैया... ज़िंदा इंसान को मार डालने वाली और मरे को ज़िंदा करने वाली चीख है। फिर भी कुछ चलते-फिरते दरिंदे उसके कपड़े उतारने में लगे रहे। उनका सबकुछ अनसुना करना और सुकून से इस कारनामे को अंजाम देना कितना ख़ौफ़नाक है! उनके चेहरे की ललक दुनिया की समाप्ति का पर्याय नज़र आती है। राक्षसों की कहानियां ही सुनी हैं लेकिन अब यकीन है कि इससे बुरे नहीं होते होंगे। भैया की कई चीखों के साथ वो महाशय भी याद आए जो अभी जेल की सैर कर रहे हैं, उन्होंने कहा था कि लड़की भैया कहती तो बच जाती।


वो चीख सुनने के बाद भीतर बहुत कुछ बदल गया है, डूब गया है। वो चीखती रही, मिन्नतें मांगती रही लेकिन उन्हें उसे नंगा करने में ही सुख मिल रहा था, वो उसी में लगे रहे। उनमें से एक ने वीडियो बनायी और अपलोड कर दी। 




कार्रवाई हो रही है लेकिन अभी तक किसी लड़की ने इसपर शिकायत दर्ज नहीं की है। कार्रवाई इसलिए हो पायी क्योंकि वीडियो अपलोड हो गयी थी। जब मैं ये सब लिख रही हूं तब भी किसी दूसरे नगर के पांचवें कस्बे के बाहर ऐसा हो रहा होगा, एक लड़की चीख रही होगी, और मैं सिर्फ़ लिखे जा रही हूं। उस लड़की के बाद कोई सबसे असहाय है तो मैं हूं। संविधान की इज़्ज़त न होती तो आक्रोश अपनी पराकाष्ठा से बहुत दूर पहले ही निकल चुका है। तब मैं चाहती कि जो हैवान बहरे होकर उस बच्ची को नोंचने में लगे हैं उन्हें जुवेनाइल होम न भेजकर ज़िंदा जला दें। तब वो समझ भले न पाते लेकिन महसूस कर सकते कि बेबसी क्या होती है, तड़प कैसी होती है।



वो लड़की जिसने अपनी ज़िंदगी की सबसे भयानक घटना देखी, शिकायत करने नहीं आयी। कितना डरावना है ये! पता नहीं उसकी शिकायत उसके घर तक भी पहुंची होगी या उसके मन में भी दफ़्न हो गयी होगी। अगर उसने घर पर बताया हो तो ऐसा क्या हुआ कि वो शिकायत करने नहीं आयी! कितनी शिकायतें ऐसे ही दहलीज़ के भीतर ही कब्र बना लेती होंगी न! 


कई लड़कियां ऐसे ही आज-कल-परसों और हर रोज़ चीखती होंगी लेकिन हम नहीं सुन पाते होंगे। कितनी लड़कियों की तड़प हम तक नहीं पहुंची होगी क्योंकि उनकी वीडियो वायरल नहीं हुई। हर रोज़ बच्चियां ऐसे ही मिन्नतें कर रही हैं। वो भीख मांग रही हैं कि हमें न खाया जाए, उनसे जिनके ऊपर पूरक होने की ज़िम्मेदारी है।



बेटियां ख़तरे में हैं क्योंकि घरों के कुलदीपक हैवान हो गये हैं। बेटियां पहले भ्रूण में मारी जाती हैं, फिर हर रोज़ थोड़ी-थोड़ी ख़ुराक़ में मारी जाती हैं जब उनके भाई को मलाई और उन्हें बासी रोटी मिलती है, जब वो कम फीस वाली स्कूल में पढ़ती हैं क्योंकि भाई को महंगे स्कूल में पढ़ाना ज़्यादा ज़रूरी है, जब वो बराबर खाकर-पढ़कर भी ज़्यादा दबाव में होती हैं क्योंकि उन्हें मां का हाथ बंटाना होता है और भाई को खेलने की छूट होती है। इसके बाद घर के बाहर हर रोज़ डर में मारी जाती हैं, बाप सांस लेने की हिम्मत नहीं जुटा पाता अगर बेटी शाम को घर न लौटी हो। बेटा नहीं आया तो कोई बात नहीं। बेटियों का हर जगह शिकार होता है। जो बेटे घर पर आने पर अपने बाहर गये होने का जवाब नहीं देते, वही बेटे किसी बेटी की ज़िंदगी का सवाल बन जाते हैं।



मां अपने बेटे को राजदुलारा बनाकर एक और पराठा खाने की ज़िद्द करती है और पूछना भूल जाती है कि बेटा देर से क्यों आया। वो बेटा कई बार मारपीट करके आता है, कई बार किसी लड़की का स्कार्फ़ खींचकर आता है। उसकी कोई जवाबदेही नहीं, वो सन् 1947 से पहले भी आज़ाद था और आज भी है, बेटियों की आज़ादी के सामने नियम व शर्तों की पोटली होती है।




  • मलाई बेटा खाता है, अच्छी शिक्षा बेटा लेता है, देर रात तक बेटा घूमता है, मारपीट बेटा करता है, घर-ज़मीन-जायदाद बेटा रखता है और नियम व शर्तों के साथ "आज़ादी" पाने वाली बेटी घर की इज़्ज़त हो जाती है। कभी उसे घरवाले मार देते हैं, कभी बाहर वाले न मार दें इस डर में मरते रहते हैं। डर बेटी का नहीं होता, इज़्ज़त का होता है।




बेटी के पैदा होते ही उसकी शादी के लिए दहेज़ की चिंता में बाप को स्कूटर पर उम्र बितानी पड़ती है। बेटी बड़ी हो जाए तो उसे संभालना पड़ता है, लोग हैं, दुनिया है, दानव हैं, सब इसी धरती पर हैं। बेटी शीशे में बंद कोई स्पेसिमेन नहीं होती लेकिन लगभग वैसी ही हो जाती है जिसका धूप और पानी भी पूर्व-निर्धारित हो, जो पिता और फिर पति के नाम के लेबल से ही संरक्षित हो।


लोगों को ये समझ नहीं आएगा कि बेटियां बलात्कार के लिए नहीं बनीं, बेटियां दहेज़ के लिए नहीं होतीं, बेटियां चीर-हरण के लिए नहीं होतीं। लोग ये मानते हैं कि ऐसा होता रहेगा और बचाते रहेंगे अपनी बेटियां, उन्हीं के बेटों ने दूसरी बेटियों को ऐसे संरक्षण के लिए मजबूर किया है



दुनिया की तमाम त्रासदियां होने पर भी, तमाम दुश्वारियां होने पर भी, कैंसर और हार्ट अटैक के होने के बावजूद, सांप और शेर के जीवित रहने के बावजूद, सुनामी और भूकंप के आते रहने के बावजूद हमें बेटियां किसी के बेटों से बचानी पड़ रही हैं। बेटियों को सिर्फ़ बेटों से ख़तरा है, पूरक होने वाला शिकारी हो चला है तो बेटियों के जन्म पर पाबंदी लग जानी चाहिए। बैन के प्रचलन में एक बैन और जुड़ जाना चाहिए। बेटियों का जन्म अपराध घोषित हो जाना चाहिए क्योंकि भारत-भूमि किसी बेटी के काबिल नहीं है (ओरिजनल पोस्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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Furkan S Khan

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