भोपाल, 11 अप्रैल। सेंट्रल जेल भोपाल में प्रतिबंधित संगठन सिमी के 21 विचाराधीन मुस्लिम कैदियों का जेल प्रशासन की और से मानसिक और शारीरिक तौर पर प्रताड़ित किया जा रहा है.
दरअसल, विचाराधीन मुस्लिम कैदियों के परिजनो ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में शिकायत की थी. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की जांच में परिजनों के आरोप सही साबित हुए है. अब आयोग ने जेल स्टाफ के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की अनुशंसा की है.
परिजनों का आरोप था कि जेल ब्रेक की घटना के बाद कैदियों को जेल प्रशासन द्वारा प्रताडि़त किया जा रहा है, उनके साथ गंभीर रूप से मारपीट की जाती है, उन्हें पेट भर भोजन नहीं दिया जाता और नहाने-धोने व पीने के पर्याप्त पानी नहीं दी जाती है. साथ ही उन्हें एकांत कारावास में रखा जा रहा है, परिजनों को उनसे ठीक से मिलने नहीं दिया जा रहा है.
बता दें कि 31 अक्टूबर 2016 की रात एनकाउंटर में आठ विचाराधीन कैदियों के मारे जाने के बाद वर्तमान में भोपाल सेंट्रल जेल में 21 कैदी बचे हैं, जिन पर प्रतिबंधित संगठन सिमी के सदस्य होने का आरोप है. एनकाउंटर होने के बाद से इन कैदियों के परिवार वाले लगातार यह शिकायत कर रहे हैं कि इन्हें जेल में शारीरिक और मानसिक तौर पर प्रताडि़त किया जा रहा है.
परिजनों के शिकायत के बाद इस मामले में संज्ञान लेते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा टीम भेजकर इन आरोपों की जांच कराई गयी, इस संबंध में आयोग की टीम ने दो बार जून और दिसंबर 2017 में भोपाल सेंट्रल जेल का दौरा करके विचाराधीन कैदियों के बयान दर्ज किया था और कैदियों के परिजनों, उनके अधिवक्ताओं, जेल के अधिकारियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं से भी बातचीत की थी.
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने अपनी जांच रिपोर्ट और अनुशंसाओं को मध्य प्रदेश सरकार को पहले ही सौप दी थी और अब यह सावर्जनिक रूप से भी उपलब्ध है. जांच रिपोर्ट में आयोग ने परिजनों ज्यादातर शिकायतों को सही पाया है और इसमें शामिल अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की सिफारिश की है. रिपोर्ट में कहा गया है कि नियमों का उल्लंघन करते हुये कैदियों को 5&8 के सेल में एकांत कारावास में रखा गया, जहां पंखे नहीं है और वहां गर्मी और उमस है. कैदियों को दिन में कुछ मिनटों के लिये ही सेल से बाहर निकाला जाता है इसकी वजह से ये कैदी कई तरह के मानसिक विकारों के शिकार हो चुके है. जबकि इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेश है कि विचाराधीन कैदियों को किसी भी परिस्थिति में भी एकांत कारावास में नहीं रखा जा सकता है. कैदियों को जेल के स्टाफ द्वारा बुरी तरह पीटा जाता है.
कैदियों ने आयोग के जांच दल को बताया कि उन्हें रबर की पट्टियों, आटा चक्की के बेल्ट और लाठियों से मारा जाता है. जेल स्टाफ कैदियों के प्रति धार्मिक द्वेष की मानसिकता रखते हैं, कैदियों को अपने धर्म के खिलाफ नारे लगाने को मजबूर किया जाता है और इनकार करने पर पिटाई की जाती है.
दरअसल, विचाराधीन मुस्लिम कैदियों के परिजनो ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में शिकायत की थी. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की जांच में परिजनों के आरोप सही साबित हुए है. अब आयोग ने जेल स्टाफ के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की अनुशंसा की है.
परिजनों का आरोप था कि जेल ब्रेक की घटना के बाद कैदियों को जेल प्रशासन द्वारा प्रताडि़त किया जा रहा है, उनके साथ गंभीर रूप से मारपीट की जाती है, उन्हें पेट भर भोजन नहीं दिया जाता और नहाने-धोने व पीने के पर्याप्त पानी नहीं दी जाती है. साथ ही उन्हें एकांत कारावास में रखा जा रहा है, परिजनों को उनसे ठीक से मिलने नहीं दिया जा रहा है.
बता दें कि 31 अक्टूबर 2016 की रात एनकाउंटर में आठ विचाराधीन कैदियों के मारे जाने के बाद वर्तमान में भोपाल सेंट्रल जेल में 21 कैदी बचे हैं, जिन पर प्रतिबंधित संगठन सिमी के सदस्य होने का आरोप है. एनकाउंटर होने के बाद से इन कैदियों के परिवार वाले लगातार यह शिकायत कर रहे हैं कि इन्हें जेल में शारीरिक और मानसिक तौर पर प्रताडि़त किया जा रहा है.
परिजनों के शिकायत के बाद इस मामले में संज्ञान लेते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा टीम भेजकर इन आरोपों की जांच कराई गयी, इस संबंध में आयोग की टीम ने दो बार जून और दिसंबर 2017 में भोपाल सेंट्रल जेल का दौरा करके विचाराधीन कैदियों के बयान दर्ज किया था और कैदियों के परिजनों, उनके अधिवक्ताओं, जेल के अधिकारियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं से भी बातचीत की थी.
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने अपनी जांच रिपोर्ट और अनुशंसाओं को मध्य प्रदेश सरकार को पहले ही सौप दी थी और अब यह सावर्जनिक रूप से भी उपलब्ध है. जांच रिपोर्ट में आयोग ने परिजनों ज्यादातर शिकायतों को सही पाया है और इसमें शामिल अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की सिफारिश की है. रिपोर्ट में कहा गया है कि नियमों का उल्लंघन करते हुये कैदियों को 5&8 के सेल में एकांत कारावास में रखा गया, जहां पंखे नहीं है और वहां गर्मी और उमस है. कैदियों को दिन में कुछ मिनटों के लिये ही सेल से बाहर निकाला जाता है इसकी वजह से ये कैदी कई तरह के मानसिक विकारों के शिकार हो चुके है. जबकि इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेश है कि विचाराधीन कैदियों को किसी भी परिस्थिति में भी एकांत कारावास में नहीं रखा जा सकता है. कैदियों को जेल के स्टाफ द्वारा बुरी तरह पीटा जाता है.
कैदियों ने आयोग के जांच दल को बताया कि उन्हें रबर की पट्टियों, आटा चक्की के बेल्ट और लाठियों से मारा जाता है. जेल स्टाफ कैदियों के प्रति धार्मिक द्वेष की मानसिकता रखते हैं, कैदियों को अपने धर्म के खिलाफ नारे लगाने को मजबूर किया जाता है और इनकार करने पर पिटाई की जाती है.