मुक़ाम-ए-फ़ातिमा बिन्त मुहम्मद मुस्तफ़ा ﷺ
बीबी फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा के मुक़ाम ने एक मुद्दत तक मुझे परेशान रखा।
मैंने सोचा बीबी फ़ातिमा, हुज़ूर मुहम्मद ﷺ की बेटी हैं, लेकिन फिर सोचा, नहीं बीबी फ़ातिमा सलामुल्लाह का इसके इलावा भी एक मुक़ाम है
सोचा बीबी फ़ातिमा सलामुल्लाह मौला अली की बीवी हैं, लेकिन फिर सोचा नहीं इसके इलावा भी आपका एक मुक़ाम है Like us on Facebook
सोचा बीबी फ़ातिमा सलामुल्लाह इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की वालिदा हैं, लेकिन फिर ज़हन में आया नहीं आपका इसके इलावा भी एक मुक़ाम है
किस्सा मुख़्तसर करती हूँ, मैं सोचती चली गयी और सोचती चली गयी , जब थक गयी तो बात यहीं आकर ख़त्म हुई
अक्सर ऐसा होता था जब सरकार-ए-दो आलम ﷺ घर से निकलने लगते थे तो बीबी फ़ातिमा सलामुल्लाह अपने नन्हे हाथों मुहम्मद-ए-अरबी ﷺ की ऊँगली पकड़कर साथ चलने की ज़िद फ़रमाती थी
हुज़ूर अलैहिस्सलाम शफ़क़त से सर पर हाथ फेर कर फ़रमाते
"मेरी लख्त-ए-जिगर ये ख़्वाहिश क्यों?"
"बाबा जान मुझे ख़तरा है के कहीं अकेला जानकार कुफ़्फ़ार आपको नुकसान ना पहुँचा दें"
ये भी होता था कि जब नालैन-ए-मुबारक में कुफ़्फ़ार के बिछाए कांटे चुभ जाते तो हुज़ूर अलैहिस्सलाम अपने नाख़ून मुबारक से खींचते और नोकीले सिरे टूटकर गोश्त ही में रह जाते।
तो कभी यूँ होता की बीबी फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा जूता उतारकर अपनी नन्ही उँगलियों से पाए मुबारक के काँटे चुनती जाती और सिसकियाँ भरती जाती।
इस कायनात के सबसे अज़ीम बाबा की अज़ीम बेटी गर्म पानी से सर-ए-मुबारक धोतीं और रोति जातीं, और ये भी होता था जब अल्लाह के महबूब नबी ﷺ सारे शहर की नफ़रत समेट कर घर वापिस आते तो बीबी फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा दस्तार-ए-मुबारक खोलकर बालों में तेल लगाती, कंघी करतीं, और अपनी भिंगीं हुई आवाज़ में कहती
"बाबा जान आप बिल्कुल फ़िक्र ना करें हमारा रब हमारे साथ है साभार अंजलि शर्मा
बीबी फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा के मुक़ाम ने एक मुद्दत तक मुझे परेशान रखा।
मैंने सोचा बीबी फ़ातिमा, हुज़ूर मुहम्मद ﷺ की बेटी हैं, लेकिन फिर सोचा, नहीं बीबी फ़ातिमा सलामुल्लाह का इसके इलावा भी एक मुक़ाम है
सोचा बीबी फ़ातिमा सलामुल्लाह मौला अली की बीवी हैं, लेकिन फिर सोचा नहीं इसके इलावा भी आपका एक मुक़ाम है Like us on Facebook
सोचा बीबी फ़ातिमा सलामुल्लाह इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की वालिदा हैं, लेकिन फिर ज़हन में आया नहीं आपका इसके इलावा भी एक मुक़ाम है
- सोचा बीबी फ़ातिमा सलामुल्लाह खातून-ए-जन्नत हैं, लेकिन फिर सोचा नहीं बीबी फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा का इसके इलावा भी एक मुक़ाम है
किस्सा मुख़्तसर करती हूँ, मैं सोचती चली गयी और सोचती चली गयी , जब थक गयी तो बात यहीं आकर ख़त्म हुई
- "फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा अज़ फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा" Follow us on Twitter
अक्सर ऐसा होता था जब सरकार-ए-दो आलम ﷺ घर से निकलने लगते थे तो बीबी फ़ातिमा सलामुल्लाह अपने नन्हे हाथों मुहम्मद-ए-अरबी ﷺ की ऊँगली पकड़कर साथ चलने की ज़िद फ़रमाती थी
हुज़ूर अलैहिस्सलाम शफ़क़त से सर पर हाथ फेर कर फ़रमाते
"मेरी लख्त-ए-जिगर ये ख़्वाहिश क्यों?"
- तो बीबी फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा भरी निगाहों से महबूब-ए-खुदा और अपने वालिद मुहम्मद-ए-अरबी अलैहिस्सलाम को देखकर कहती .
"बाबा जान मुझे ख़तरा है के कहीं अकेला जानकार कुफ़्फ़ार आपको नुकसान ना पहुँचा दें"
ये भी होता था कि जब नालैन-ए-मुबारक में कुफ़्फ़ार के बिछाए कांटे चुभ जाते तो हुज़ूर अलैहिस्सलाम अपने नाख़ून मुबारक से खींचते और नोकीले सिरे टूटकर गोश्त ही में रह जाते।
तो कभी यूँ होता की बीबी फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा जूता उतारकर अपनी नन्ही उँगलियों से पाए मुबारक के काँटे चुनती जाती और सिसकियाँ भरती जाती।
- और ये भी होता था जब कुफ़्र के ग़ुरूर में मुब्तला मक्की कुफ़्फ़ार हुज़ूर अलैहिस्सलाम के सर-ए-मुबारक पर आलूदगी फेंक देते थे तो बीबी फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा अपने हाथों से साफ़ करती।. Follow us on Instagram
इस कायनात के सबसे अज़ीम बाबा की अज़ीम बेटी गर्म पानी से सर-ए-मुबारक धोतीं और रोति जातीं, और ये भी होता था जब अल्लाह के महबूब नबी ﷺ सारे शहर की नफ़रत समेट कर घर वापिस आते तो बीबी फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा दस्तार-ए-मुबारक खोलकर बालों में तेल लगाती, कंघी करतीं, और अपनी भिंगीं हुई आवाज़ में कहती
"बाबा जान आप बिल्कुल फ़िक्र ना करें हमारा रब हमारे साथ है साभार अंजलि शर्मा